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नाथ! हौं केहि बिधि करौं पुकार / हनुमानप्रसाद पोद्दार

नाथ! हौं केहि बिधि करौं पुकार॥
निपट निलज्ज निखिल खल-दल महँ, हौं सब कौ सरदार।
जितने अवगुन गनिये जग महँ, मैं सब कौ भंडार॥
अतिसय कुटिल कलंकी कामी, कल्मष कौ आगार।
कलह-प्रिय, कलि-कलुष-निकेतन, कपटी, क्रूर-बिचार॥
द्वेषी परम, दोष-दरसन-पटु, द्रोही, दंभाचार।
दया-रहित, दुर्मद, दुर्भग अति, दुष्टस्नचार-बिचार॥
लंपट, लोलुप इंद्रिय-सुख कौ, धन-लालची-लबार।
निंदक, पिसुन-परायन, पामर, अति मानी, अबिचार॥
जान-विराग सिखावौं सब कौं, कहौं भगति कौ सार।
प्रेम पुनीत बखान, ठगौं जग, मिथ्या आँसू ढार॥
कहौं-कहावौं दास तिहारौ, सब महँ करौं प्रचार।
सुख की आस लगी विषयन सौं, प्रभु की कृपा बिसार॥
‘करौ सहज बिस्वास कृपा पर, उतरौ भव-निधि पार’।
कहि-कहि सदा सबन्हि समुझावौं, निज मन कछु न बिचार।
जिमि मलभरे बाल सौं माता करती सहज दुलार॥
निज कर धो‌इ-पोंछि, गोदी लै, जननि बढ़ावति प्यार।
तिमि मो सम अति नीच जंतु के सब अपराध बिसार॥
सहज कृपालु दयासागर प्रभु कीन्ही कृपा अपार।
मो सम महापातकी कौ नहिं नरकहु में निस्तार।
निज दिसि देखि दयामय करिहैं निस्चै ही उद्धार॥
दीनबंधु हरि सहज सुहृदबर, अघहर परम उदार।
देहु ग्यान, बैराग्य, भगति, पद-प्रीति अमित-दातार!॥