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नाथ अब लीजै मोहि उबार / हनुमानप्रसाद पोद्दार
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नाथ अब लीजै मोहि उबार!
कामी, कुटिल, कठिन कलि-कवलित, कुत्सित, कपटागार।
मोही, मुखर, महामद-मर्दित, मन्द, मलिन-आचार॥
वलयित विषय, विताडित, विचलित, विकसित विविध विकार।
दीन, दुखी, दुरदृष्टस्न्, दुरत्यय, दुर्गत, दुर्गुण-भार॥
पङिङ्कल प्रचुर, पतित, परिपन्थी, निरपत्रप, निःसार।
निःस्व, निखिल निगमागमवर्जित, निगडित नित गृह-दार॥
दीनाश्रय! तव विरद विपती-विदारण श्रुति-विस्तार।
सुनत सुयश शुचि सो अब मैं आगत अघहारी-द्वार॥