नानाजी के श्लोक / देवेश पथ सारिया
सच्चे तौर पर
सम्मान की वजह से डर
मुझे सिर्फ एक पुरुष से लगता था
नानाजी ने मुझे तीन श्लोक बताये थे
सुबह उठते ही दोहराने के लिए
मैं जानता हूँ
पृथ्वी को विष्णुपत्नी कहकर, क्षमा मांगकर भी
मैं रहूंगा
जीवनपालक विष्णु की सभ्यतापोषक प्रिया का अपराधी ही
दोहराता रहूंगा अपराध
जिनसे पृथ्वी होती रहेगी जीवन के लिए संकुचित
बढ़ती रहेगी ग्लोबल वार्मिंग
मैं पृथ्वी की बाकी सब सन्तानो की हत्यारी प्रजाति, मानव हूँ
हाथ में देवी-देवताओं का वास होने की अनुभूति कर भी
इन हाथों से हर काम ठीक ही हो, ऐसा भी नहीं
और कन्धों पर बैठे फ़रिश्ते
दर्ज़ करते रहेंगे अच्छे-बुरे सब काम
बुरे काम दर्ज़ करने वाले फ़रिश्ते की स्याही होगी कुछ ज़्यादा ही ख़र्च
सात चिरंजीवी महापुरुषों का स्मरण
मुझे नहीं बना देगा चिरंजीवी या शतायु
खुद नानाजी भी कहाँ हो पाए शतायु
पर वे जीवन संग्राम के महारथी थे
जब हम किसी के लिए संभावना नहीं थे
वे लड़े अपनी बेटी और उसके बच्चों के भविष्य के लिए
बैंक की जमा रकम के ब्याज से बुढ़ापा काटकर
रुकी हुई पेंशन को पाने की कोशिश करते हुए मरकर
उन्होंने जो दिन काटे फाक़े कर-कर
उनकी लहलहाती फसल हैं हम
एक श्लोक हाथ के मूल में गोविन्द की उपस्थिति बताता है
पर मैं ब्रह्मा पढता हूँ
क्योंकि बहुत साल पहले मेरी स्मृति में नानाजी ने ब्रह्मा बताया था
(या शायद मुझे ही गलत याद रहा हो)
हर सुबह ये श्लोक
मैं लम्बी उम्र या किसी देवी-देवता की प्रसन्नता के लिए नहीं पढता
इनके बहाने मैं याद करता हूँ नानाजी को हर सुबह, वस्तुतः