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नाना दुःखों में चित्त विक्षेप में / रवीन्द्रनाथ ठाकुर

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नाना दुःखों में चित्त विक्षेप में
जिनके जीवन की नींव काँप-काँप उठती है बार-बार,
जो हैं अन्यमना, सुनो,
मानो मेरा कहना
अपने को भूलना न कभी भी।
मृत्युंजय हैं जिनके प्राण,
समस्त तुच्छता ऊपर जो दीप जला रखते हैं अनिर्वाण,
उनमें हो तुम्हारा नित्य परिचय,
रखना ध्यान।
उन्हें करोगे यदि खर्व तो
खर्वता के अपमान से बन्दी बने रहोगे।
उनके सम्मान से बन्दी बने रहोगे।
उनके सम्मान का करना मान तुम
चिरस्मणीय हैं विश्व में जो।