किसी भी मौसम से नहीं किया
कभी भी कोई समझौता
अब तुम्हारी महायात्रा पर
आग उगल रहा हैं सूरज
पूरी ताक़त से
दावाग्नि में घिरी जान
बेभान होकर भागती है जहाँ मिल जाए रास्ता वहीँ
दस दिशाओं में
और सभी दिशाओं का अन्धेरी हो जाना
भय दावाग्नि का नहीं है
बल्कि ऐसे में रास्ता कैसे निकाला जाए
यह बताने की समझदारी बस तुम्हारे पास थी
मेरे रगों में बह रहा है तुम्हारा अंश
बहता रहेगा निरन्तर तब भी
अनाथ ही
इसका जवाब नहीं किसी भी किताब मैं
माँ के पहले हो तुम
माँ होते हुए भी है तुम्हारी ममता की आकाँक्षा
मवेशियों के वापस आने का समय हो गया है
खुर की आवाज़ आ रही है पगडण्डी से
अब उसके पीछे तुम नहीं आओगी
गोधूली बेला में आँगन में
किसकी राह देखें?
ननिहाल का रास्ता दूर हो जाता है
उम्र जैसे-जैसे बढ़ती है
तुमने लेकिन बाँध कर रखा है ममता के धागे से
अकाल आए कितने ही तब भी
कम नहीं हुई नमी जिसकी
मेरे पास माँ है
लेकिन माँ के पास कहाँ है माँ?
ध्यान से देखा आज माँ का चेहरा
इतने ध्यान से कभी माँ को नहीं देखा
कितनी थक गई है,
अपराधबोध हुआ मन में
चेहरे पर झुर्रियों का जाल बढ़ गया है
बालों का रंग भी उड़ गया है
माँ अब नानी जैसी दिखने लगी है।
मूल मराठी से अनुवाद — टीकम शेखावत