नामविश्वास-4 
(71)
जोगु न बिरागु , जप, जाग ,तप, त्यागु , 
ब्रत, तीरथ न धर्म जानौं ,बेदबिधि किमि है।
    तुलसी-सो पोच न भयो है , नहि ह्वैहै कहूँ,
   सोचैं सब, याके अघ कैसे  प्रभु छमिहैं।  
मेरें तौ न डरू, रघुबीर! सुनौ  , साँची कहौं , 
खल अनखैहैं  तुम्हैं, सज्जन न गमिहैं। 
    भले सुकृतीके संग मोहि तुलाँ तौलिए तौ, 
    नामकेें प्रसाद भारू मेरी ओर नामिहैं।।
(72)
जाति के, सुजाति के, कुजाति के पेटागि बस,
खाए टूक सबके, बिदित बात दूनीं सों। 
    मानस-बचन-कायँ किए पाप सतिभायँ,
    रामनामको प्रभाउ, पाउ,महिमा, प्रतापु,
    तुलसी-सो जग मनिअत महामुनी-सो।
अतिहीं अभागो, अनुरागत न रामपद, 
मूढ़ एतो बड़ो अचिरिजु देखि-सुनी सो।।