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नाम अभी अंकित कर ले / सुरेश कुमार शुक्ल 'संदेश'
Kavita Kosh से
सघन कुहासा घिरा हुआ है क्या जाने छट पायेगा ?
जीवन का स्वर्णिम भविष्य अपना शशिमुख दिखलायेगा ।
अभी दूरदर्शी दृग अपने क्षितिजों तक चल सकते हैं,
बाधाओं का महाजाल जाने कब तक कट पायेगा ?
अभी शेष ऋतुराज यहाँ है पंचम स्वर में कुछ गाले
कल से जीवन में पतझर फिर रास रचायेगा ।
अभी इन्द्रधनुषी हैं सपने फागुन भी हैं रँगा-रँगा,
कल उजडे उपवन में कोई क्योंकर सावन गायेगा ?
नीरव-नीरव है जल का तल चल नौका-बिहार करलें,
उतर रही है धुली चाँदनी झंझा कोई आयेगा ?
युग! अपने पृष्ठों पर मेरा नाम भी अंकित कर लें,
कल के प्रलयोत्सव में जाने कौन कहाँ खो जायेगा ?