भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

नाम उनका / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

14
आओ लिख लें
नाम उनका दोस्तों में
ताकि वे भी
कल धोखा दे सकें।
15
इमारतों का
रोज़ जंगल उग रहा
मेमने-सा आदमी
हलकान है-
जाए कहाँ!
16
बारूद के ढेर पर खड़ी
मुस्कुराती है मौत
एक दिन धरती पर
सिर्फ़ श्मशान रह जाएँगे।
17
ओढ़ न पाए
चार घड़ी हम
ज्यों की त्यों
धर दीनी हमने
आचरण की
फटी चदरिया ।
18
जनता है बेहाल
जनसेवक पीते खून
उड़ाते माल ।
19
हे भ्रष्टाचार !
तू है सर्वव्यापक
अजर – अमर, दुर्निवार
20
वे मुस्काए
ओट में सभी
प्रपंच छुपाए ।
21
तन पर
डिग्रियों का बोझ
पेट है खाली
पीठ झुकी
सामने लम्बी अँधेरी गली।
22
तुमने ठगकर
क्या है पाया?
बचा-खुचा
विश्वास गँवाया।
23
बेगानों की बस्ती में
अपनापन खूब मिला
अपनों में लौटे हैं जबसे
बेगाने हो गए ।
24
टोपियों ने किए
अनगिनत वायदे
रख दिए ताक पर,
क़ानून और क़ायदे।
जीत गए चुनाव ,
तो लोप हो गए।
और लगे करने,
भाई -भतीजों के फ़ायदे.