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नाम के आगे रकम / प्रमोद कुमार

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हमारे घर में
खुल रहा यह किसका दरवाज़ा
ज़ोर से खटखटाते
कि हमारा बन्द था सब कुछ!

कहाँ बन्द थे
छप्पर छवाते
हमारे अनेक हाथ !
चूल्हे की आग पहुँचे घर-पर
चलते इतने सारे पैर !
               
हमारे देह में किसके अंग जोड़ेंगे ये दरवाजे़

कहाँ जाएगा हमारे छोटे घर में अटा
बहुत बड़ा बाहर ?

     कहाँ जाएगा हमारा भीतर
      जहाँ आँगन में माँ चलाती सूपा
      और वहीं निर्भीक हो
      घोंसलें बुनतीं गौरेये!

हमारे नाम
      लिखे थे दूर से भी अन्दर बुलाने के लिए
      हमारे नाम के आगे क्यों लिख रहे रकम !