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नाम कोई पता न घर कोई / बल्ली सिंह चीमा
Kavita Kosh से
नाम कोई पता न घर कोई ।
हमको ढूँढ़ेगी क्या नज़र कोई ।
जिस की छाया में हम न बैठ सकें,
मुल्क भर में नहीं शज़र कोई ।
डर गया हूँ मैं आज थोड़ा-सा,
तेरी आँखों में देखकर कोई ।
काली ज़ुल्फ़ें हटीं तो ऐसा लगा,
उसका चेहरा है या फ़जर कोई ।
जिस पे मैं जान भी छिड़कता हूँ,
उस की आई कोई ख़बर नहीं ।