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नाम दिल पर इक लिखा-सा रह गया / मनोहर विजय
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नाम दिल पर इक लिख़ा-सा रह गया
ज़ख़म कोई बस हरा-सा रह गया
दोस्तों में तज़करा-सा रह गया
दर्द मेरा अनसुना-सा रह गया
वो चुराकर ले गये ताबीर भी
ख़्वाब आँख़ों में सजा-सा रह गया
कौन था वो बेबसी के हाथ में
कौन मुझमें ख़ौलता-सा रह गया
इक सदा को अनसुना करते रहे
कौन हम में बोलता-सा रह गया
किस कदर डर था हवाओं का उसे
रात भर दीपक बुझा-सा रह गया
पार करने को समन्दर इश्क़ के
हाथ में कच्चा घड़ा-सा रह गया
बेबसी में मैं सरे-साहिल ‘विजय’
रक़्स-ए-मौजाँ देख़ता-सा रह गया