नाम देवदत निश्चर बुद्धि, मुर्ख-मूढ़ ग्वार तेरी / राजेराम भारद्वाज
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सांग:– महात्मा बुद्ध (अनुक्रमांक-15)
जवाब – सिद्धार्थ का।
नाम देवदत निश्चर बुद्धि, मुर्ख-मूढ़ ग्वार तेरी,
बिना भजन माणस की जूनी, पशुआं तै बेकार तेरी ।। टेक ।।
अपणी बड़ाई और की निंदा, भला किसे का चाह्या ना,
सूम बण्या धन होते भी, पुन्न मै पैसा लाया ना,
मात-पिता गुरू-अतिथी, कोए साधूं-संत जिमाया ना,
संध्या-तर्पण हवन-गायत्री, कदे गंगा जी मै नहाया ना,
हर मै ध्यान लगाया ना, हो कुकर नैया पार तेरी ।।
धीरज-धर्म दया मन मै, दीन ईमान तेरै कोन्या,
जन्म राजघर कंगलापण सै, भाग मै जान तेरै कोन्या,
स्वर्ग, सुमरण, सेवन, पूजन, भजन मै ध्यान तेरै कोन्या,
अहिंसा-आचरण सत्यवाणी, आत्मज्ञान तेरै कोन्या,
मन मै भगवान तेरै कोन्या, या नीति सै अहंकार तेरी ।।
झुठ-कपट छल-बेईमाना, लोभ-नीच अहंकारी,
नेकी करै बदी नै त्यागै, कोन्या बात विचारी,
राम भज्या ना रह्या धर्म पै, उम्र बीतगी सारी,
बेदर्दी दया धर्म नहीं, सदा जीव का बण्या शिकारी,
खेल ताश का दुनियादारी, कदे जीत कदे हार तेरी ।।
मुढ़ अनाड़ी नहीं प्रेम तै, आया बोलणा-बतलाणा,
पढ़ लिखके नै डूबण लाग्या, होया समझण जोगा स्याणा,
पाप-पून्य का दरगाह मै, इन्साफ एक दिन हो ज्याणा,
राजेराम फिरै गफलत मै, देख बावला जमाना,
रोज रागणी कथके गाणा, जिन्दगी सै प्रचार तेरी ।।