नाम पर विकास के चल रही दुधारियाँ
जिं़दगी को डस रहीं, हर तरफ निठारियां
खुदकुशी का रास्ता है किसान के लिए
कह रही ये खेतियां भर रहीं ये क्यारियाँ
आँख वाले भी शरीक आज अंधी दौड़ में
खून की प्यासी सड़क पर लेके खूनी लारियाँ
जिं़दगी को सींचती थी जो नदियां नीर से
आज मैला ढो रहीं लाचार ये बेचारियां
है जवानी शर्मसार बदनुमाया दाग पर
सोच पर पहरे लगे, घुट गईं किलकारियाँ
ढूंढते हैं अब परिन्दे कट गये पेड़ों की छांव
तौलने को पर यहाँ है बहुत दुश्वारियाँ
गीत ग़ज़लें क्या लिखे उर्मिल मशीनी दौर में
शब्द से झरने लगीं है अब फक़त चिंगारियाँ।