निर्मल नाम निरंजन को, अभि अन्तर ध्यान सदा धरु रे।
मिलनी गनिका गज गिद्ध तरे, मृगराज अजामिल व्याधहुरे॥
सावज-कारण श्वान भरै, तिमि तून भरो जग-धन्धहुँ रे।
धरनी धरु संगति साधुनकी, जपु माधव 2 माधव रे॥3॥
निर्मल नाम निरंजन को, अभि अन्तर ध्यान सदा धरु रे।
मिलनी गनिका गज गिद्ध तरे, मृगराज अजामिल व्याधहुरे॥
सावज-कारण श्वान भरै, तिमि तून भरो जग-धन्धहुँ रे।
धरनी धरु संगति साधुनकी, जपु माधव 2 माधव रे॥3॥