नाम ले मुझको बुलाओ / शार्दुला नोगजा
ओ नदी ! मैं बन के धारा
या कि बन दूजा किनारा
संग तेरे चल पडूँगी, नाम ले मुझको बुलाओ
दधि कसैला पात्र पीतल
पात्र बस चमका रे पागल
तर्क की तलवार से भयी
भावना भयभीत घायल
ओ प्रिये! तुम स्वर्ण मन में
अहं का दधि ना जमाओ, नाम ले मुझको बुलाओ
जो निशा से भोर का
प्राची-प्रतीची छोर का
बंध मेरा और तुम्हारा
जो घटा से मोर का
तुम समय के कुन्तलों को
मोर पंखों से सजाओ, नाम ले मुझको बुलाओ
तुहिन कण सी उज्ज्वला जो
चन्द्रिका सी चंचला जो
पात पे फिसली मचलकर
स्निग्ध निर्मल प्रीति थी वो
है अड़ी नवयौवना सी
पाँव इसके गुदगुदाओ, नाम ले मुझको बुलाओ
पथिक ऐसे थोड़े गिन के
साथ हैं मनमीत जिनके
हम मिले हैं सुन सजनवा
साज और संगीत बन के
राह की संगीतिका को
मिलन धुन में ना भुलाओ, नाम ले मुझको बुलाओ
नाम ले मुझको बुलाओ !