नाम सम्मान का दे विदा कर रहे / जनार्दन राय
नाम सम्मान का दे विदा कर रहे,
ऐ बढ़ौना के साथी तू क्या कर रहे?
‘बढ़ोना’ ‘बढ़ोना’ का आदेश दे,
तुमने अपने से आगे न बढ़ने दिया।
नेह की देह दे प्रेम ध्रव सा अटल,
दूर अपने से कर तुम ये क्या कर रहे?
शील तेरा सरलता तुम्हारी निरख,
प्रेम की भूल कर तुमको अपना लिया।
रस तो पिया मगर तृप्ति तो न मिली,
ऐसा सम्मान दे तुम ये क्या कर रहे?
राम निहोरा कर रामनन्दन मिला,
भक्ति-भावों का सुन्दर सुमन भी खिला।
उर चमन में बहारें जब आने लगी,
दूर इनसे हटा तुम ये क्या कर रहे?
भोग का रोग था जब सताने लगा,
योग योगेन्द्र से सीखने तब लगा।
योग भी न मिला, रोग भी न टला,
बीच में भेजकर तुम ये क्या कर रहे?
हार हरिकान्त का डाल अपने गला,
जब मनाया महेश्वर को करने भला।
प्रेम की जीत दे, नेह की रीत ले
अश्रु आँखों में दे ये तू क्या कर रहे?
राम बहादुर सा वीर साथी दिया,
नेह का नीड़ निर्माण साधन दिया।
नर नरेन्दर का संगम सुगम कर भला,
गम की घाटी को दे तुम ये क्या कर रहे?
चन्द्रधर, गंगाधर, शिवशंकर महा,
औढर दानी का दर्शन तो करने दिया।
गीत डमरु के जब गुन गुनाने लगे,
प्रीत मुन्नी की हमसे ले क्या कर रहे?
वेणुवादन श्रवण कृष्ण का कर सदा,
प्रेम-प्याला पी बेसुध रहा जो सदा।
मदभरा रस पिला, होश में ला यहाँ,
जोश देकर भी बोलो ये क्या कर रहे?
इस चमन के सुमन बालको-बालिका,
तुम बनोगे भरत, राम औ कालिका।
नन्हें-नन्हीं, मुन्ने-मुन्नी से कर अलग,
ऐ बढ़ौना के साथी तुम क्या कर रहे?
-बढ़ौना,
2.2.1983 ई.