भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
नाम हमारा खाक है / मलूकदास
Kavita Kosh से
नाम हमारा खाक है, हम खाकी बन्दे।
खाकही ते पैदा किये, अति गाफिल गन्दे॥१॥
कबहुँ न करते बंदगी, दुनियामें भूले।
आसमानको ताकते, घोड़े चढ़ि फूले॥२॥
जोरू-लड़के खुस किये, साहेब बिसराया।
राह नेकीकी छोड़िके, बुरा अमल कमाया॥३॥
हरदम तिसको यादकर, जिन वजूद सँवारा।
सबै खाक दर खाक है, कुछ समुझ गँवारा॥४॥
हाथी घोड़े खाकके, खाक खानखानी।
कहैं मलूक रहि जायगा, औसाफ निसानी॥५॥