भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

नाया रे जोमन सइयाँ लवलन पनियाँ भेजल हो राम / मगही

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मगही लोकगीत   ♦   रचनाकार: अज्ञात

नाया रे जोमन<ref>यौवन, जवानी</ref> सइयाँ लवलन<ref>लाये</ref> पनियाँ भेजल<ref>पानी भरने के लिए</ref> हो राम।
सिर लेले सोनेे गेंडुरिया<ref>गेंडुरी, इंडुरी; एक गोलाकार उपकरण, जिसे सिर पर रखकर, उसके ऊपर घड़े को रखा जाता है</ref> गेडुर सिर गागर हो राम॥1॥
देखलूँ हम कुइयाँ केरा<ref>का, की</ref> रीत<ref>रीति</ref> अलि घबड़ायल हो राम।
कुइयाँ पर भेलइ बड़ा भीर, घयली<ref>घड़ा</ref> मोर टूटल हो राम।
का लेके होबइ<ref>होऊँगी</ref> हजूर<ref>सामने, सम्मुख</ref> बाँह मोर टूटल हो राम॥2॥
सास मोर सूतलइ कोठरिया, ननद कोठा ऊपर हो राम।
सामी मोरा सूतलन अगम घर, कइसे उनखा<ref>उन्हें</ref> जगइती<ref>जगाती</ref> हो राम॥3॥
उठु-उठु ननदी अभागिन, भइया के जगावहु हो राम।
पाँच चोर घरवा में घूसल, परान के बचावहु हे राम॥4॥
नहिं उठइ ननदी अभागिन, भइया के जगावइ हो राम।
पाँचो चोर घरवा में घूसल, नहीं परान बाँचत हो राम॥5॥
सुखिया<ref>सुखी</ref> हइ<ref>है</ref> संसार, सुखे रे नीन सोवइह<ref>सोता है</ref> हो राम।
दुखिया दास कबीर, हरि के नाम गावत हो राम॥6॥

शब्दार्थ
<references/>