स्वकीया - युव तप योगहिँ अंगनहि मंगल जंगल पाल
चामर, मृग, शुक, पिक, करी, केहरि, शिखी, मराल।।1।।
नवोढा - सुमुखि विमुखि, नत नयन, तन झाँपि, काँपि नहि भाखि
विरत रतहु कत देथि सुख नबल वधू मधु माखि।।2।।
प्रौढ़ा (प्रेमगर्विता) - उत्कट मधुरो माहुरे सखि? कहबी से साँच
प्रिय क प्रेम तत गाढ़ जे सहि न सकी हम आँच।।3।।
सौन्दर्यगर्विता - मुहेँ निहारथि, विधु न पुनि, कुहू न सूनथि बोल
हमर प्रेयसी श्रेयसी प्रिय घुमि - घुमि कर घोल।।4।।
पदुमिनी आदि - ने वन, नेमलय क पवन, ने मधु माधव मास
बुझल कोनहु नव पदुमिनिक अगक सुरभि सुवास।।5।।
मन्द-मन्द गति हस्तिनी, चित्रिणि पहिरि पटोर
कंबुकंठि, सुरभित वयस पदुमिनि, रूप सङोर।।6।।
परकीया - राधा कृष्णक कथा कहि वाचक भेला विभोर
एम्हर श्राविका हृदयमे प्रयणक उठल हिलोर।।7।।
वचनविदग्धा - दूर गाम जंगल सघन पथ निर्जन घन घोर
एकसरि छी, दोसर अहीँ पहुँचायब वर जोर।।8।।
सामान्या - पुर जनपद सरिता बहय, सुरभित लता दिगंत
गण-वनिता जन - गणक मन भरइछ रूप अनंत।।9।।
वार वधू कल नादिनी उच्छल वयस तरंग
सजल कुटिल गति कल-मुखर करय कूल तरु भंग।।10।