नाराज़ आदमी का बयान-2 / नीलाभ
शब्दों से नाता अटूट है
शब्दों से मेरा नाता अटूट है
मैं उन्हें प्यार करता हूँ
लगातार
लड़ता हूँ झगड़ता हूँ उनसे
अपनी समझ से
उन्हें तरतीब देता रहता हूँ
यहाँ तक कि कई बार
खीझ उठता हूँ उन पर
बहुत बार
मैंने कहा है उनसे
क्यों तंग करते हो मुझे ?
भाई, अब तुम जाओ
कहीं और जा कर डेरा जमाओ
मेरे दिमाग़ को घोंसला मत बनाओ
मगर शब्द हैं कि लगातार
मेरा पीछा करते हैं
मेरे कानों में गूँजते हैं
मेरे दिमाग़ पर दस्तक देते रहते हैं
मैं जानता हूँ
मैं कई बार उन्हें
व्यक्त नहीं कर पाता
उनकी दस्तक के बावजूद
कई बार
मेरे दिमाग़ का कोई दरवाज़ा
नहीं खुल पाता
मैं कुछ और कहना चाहता हूँ
वे कुछ और सुझाते हैं
मैं तराशना चाहता हूँ उन्हें
वे बार-बार
मेरे हाथों को चुभ जाते हैं
कभी मैं आगे बढ़ जाता हूँ
कभी वे पीछे छूट जाते हैं
लेकिन न वे मुझे छोड़ते हैं
न मैं उन से पीछा छुड़ा पाता हूँ
उन्हीं के रिश्ते से मैं ख़ुद को
ज़िन्दगी से जुड़ा पाता हूँ
उन्हीं के रिश्ते से मैं ख़ुद को
ज़िन्दगी से जुड़ा पाता हूँ