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नारायणलाल परमार / परिचय

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नारायणलाल परमार

==कुछ प्रमुख कृतियाँ=== 

हिन्दी रचनाओं में कांवर भर धूप, रोशनी का घोषणा पत्र, प्यार की लाज, छलना, पूजामयी, खोखले शब्दों के खिलाफ, सब कुछ निस्पन्द है, कस्तूरी यादें, विस्मय का वृन्दावन आदि हैं। छत्तीसगढ़ी रचनाओं में सोन के माली, सूरज नई मरै, मतवार आदि प्रमुख हैं।

पुरस्कार

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विस्तृत परिचय

नारायणलाल परमार नारायणलाल परमार छत्तीसगढ़ के प्रमुख साहित्यकारों में गिने जाते हैं। आधी सदी से भी अधिक समय तक वे देश भर की पत्र पत्रिकाओं में छपे, उनके गीत रेडियो से बजते रहे, कवि सम्मेलनों में उनकी उपस्थिति निरंतर बनी रही और पाठ्यपुस्तकों के जरिए लाखों बच्चों ने उनकी रचनाओं को पढ़ा। तीन उपन्यासों के अलावा उनके दर्जनों गीत व कविता संग्रह प्रकाशित हुए हैं। छत्तीसगढ़ की लोककथाओं व लोकगीतों की दो किताबें भी उन्होंने लिखी हैं। बाल कविताओं और कहानियों की भी अनेक किताबें देश के प्रतिष्ठित प्रकाशन संस्थानों से प्रकाशित हुई हैं। इस तरह चालीस से अधिक किताबें उनकी छप चुकी हैं। मूलत: गुजरात के श्री परमार अखबारनवीस पिता के आदर्शवादी पुत्र थे। पिता को सरकार के खिलाफ लिखने के लिए जेल के अंदर और फिर राज्य से बाहर रहना पड़ा। इस वजह से श्री परमार का पारिवारिक जीवन बहुत कष्टप्रद रहा। उन्होंने आजीविका के लिए टाइमकीपर के रूप में काम किया, दर्जीगीरी की, फौज में भर्ती हुए और फिर लंबा जीवन शिक्षक के रूप में गुजारा। उन्हें सबसे अधिक प्रतिष्ठा इसी रूप में मिली। स्कूल में पढ़ते हुए स्वतंत्रता आंदोलन के दिनों से उन्होंने लिखना शुरू किया। उम्र और परिस्थितियों के मुताबिक उन्होंने देशभक्ति, श्रृंगार, व्यवस्था विरोध और दार्शनिकता से ओतप्रोत रचनाएं लिखीं। उनका चिंतन आकाशवाणी से प्रसारित होता रहा। एक लंबा साहित्यिक जीवन गुजार कर उन्होंने अपने छोटे से कस्बे धमतरी के अस्पताल में अंतिम सांसें लीं।