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नारी अस्मिता का मूल्यांकन / दर निर्धारण / गीता शर्मा बित्थारिया

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एक दर जो सरकार तय करती है
एक छोटी या बड़ी धनराशि का चेक
एक घर
घर में एक सदस्य को सरकारी नौकरी ?

एक दर जो विपक्षी खरीदना चाहते हैं
अगर उनके तय एजेंडा में आती है तो
मोमबत्तियाँ
धरना प्रदर्शन नारेबाज़ी
सांकेतिक गिरफ्तारियां
सरकार को गालियाँ
सोशल मीडिया पर
हंगामा ?

एक दर जो समाज ने तय कर ली है
कुछ दिनों तक बात
विरोध प्रदर्शन
डर, मौन, उदासीनता,
कुछ आलेख, कवितायेँ,
बेटियों को सख्त हिदायतें ?

फिर अगली घटना होने तक की लंबी
मृतप्राय सी खामोशियां
 सरकार की
अ सरकार की
बे सरकार की ?

हर स्तर पर
हर क्षण
हर कोई
इस पतन
को बस नीचे और नीचे
जाते हुये देख रहा है ?

सीता और द्रोपदी की
अस्मिता के लिए
लोगों ने मोमबत्तियाँ नहीं
लंका जलाई
दुराचारियों के
मानवाधिकारो की
पैरवियां नहीं की
समझौतों के बिना
उनके विरुद्ध युद्घ लड़े
प्ले कार्ड नहीं दिखाये
पुतले जलाए है
फिर भी क्यूँ हम
दोहराव नहीं रोक पाये हैं?

शक्तिस्वरूपा
महिषासुर मर्दिनी
खण्ड खण्ड में
विभक्त हुई
असुरों से स्वरक्षा हेतु
असुरों के ही आधीन हुई ?

कितना चयनित , प्रसाधनी
कितना रस्मी ,खोखला है
ये औपचारिकताओं वाला विरोध
नारीवादी संगठनों की
ये # वाली सम्पूर्ण क्रांति
अगर ये होने वाली अगली
घटना को रोक नहीं पाते हैं ?

तिल तिल कर क्षरण होती
हमारी-आपकी संवेदनायें
समाज और संस्कृति के
विकृत विकार व्याधि का
दिन प्रतिदिन बढता संक्रमण
अब तो मेरी तुम्हारी
रगों से भी रिस रहा है
अगर घायल मानवीयता का
दारुण क्रन्दन भी
हमें अब रुलाता नहीं है
ये मानव होने पर सबसे बड़ा
प्रश्नचिन्ह लगा रहा है ?

स्व अर्जित मान का
गौरव गान कर ले
क्यूँ आभार मानती है
उधार के सम्मान के लिए
ओ नारी अब तो
उठ और जोड़ ले
सारी विभक्तियां
मिटा दे विभाजन की
सारी ग़लतियाँ
और बोल अपनी
हर हम जात के
सम्मान के लिए
बिना डरे बिना रुके
और रीढ़ बन बिना झुके हुये

हम कब समझेंगे कि
नारी के प्रति व्यवहार ही
हमारे समाजिक मूल्यों का
असली सूचकांक है
स्त्रियों की अस्मिता
का मूल्य
देश समाज संस्कृति
के सापेक्ष होता है
ना कम
ना ज्यादा