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1   
नारी की आभा
 सृष्टि के  सूर्य- सी है
 उजास लाती
 चिड़िया-सी उड़ती 
  पंख फैला नभ में  ।
2
 सुधि- सपने
नींद नदी में बहे
 बिना रुके ह़ी
अविराम बहते      
सागर जा ठहरे  ।
3
सुबह सूर्य
धूप भरी नदी में
तैरता रहा
साँझ जब वो रुका
सागर लाल हुआ ।
4
 ऋतु थी प्यासी
तितली- सी उड़ती
रस पीकर
कलियों से खेलती
रसपगी हो जाती ।
5
 घुँघरू बजा 
फागुनी हवाएँ भी
सुर मिलाके
चिड़िया संग डोली
हरी -भरी धरा पे ।