नारी शक्ति / सुप्रिया सिंह 'वीणा'
भारत भूमि में नारी के सब रूप निराला छै।
हर रूपोॅ में बंदन पूजन श्रृंगार निराला छै।
बेटी के रूपोॅ में नारी दुर्गा छै,
दुनियाँ के सब दुर्दिन काटै,
घर के उजयारी छै
बेटी संग में बाबुल के तेॅ संसार निराला छै।
बहु लक्ष्मी रूप धरी आवै,
घर कमल खिलावै छै
हर पल वसंत छै मधुमास, ज्योति बिखराबै छै।
वीणापाणि कभी विष्णुप्रिया अवतार निराला छै,
जननी बनी सृष्टि के लय में, आदि शक्ति रूप धरै।
संस्कार, शील, मर्यादा, सुयश सब अंग भरै।
पालन रूपोॅ में पार्वती के पतवार निराला छै,
रक्षा कवच छै नारी जग में
हर पल हर रूपोॅ में ,
आँचल के छाया से नारी,
जगती के ताप हरै।
ममता संे भरलोॅ गोदी के विस्तार निराला छै।
काली बनी दुश्मन केॅ मारै,
जिए संताने ले
सबके जीवन छै उनके कृपा
वरदान निराला छै
भारत के नारी के जग में जयकार निराला छै।