विधि की है सर्वोत्तम रचना, 
सम्पूर्ण सर्जन की क्यारी है। 
जीवन में विस्तृत मरूथल को, 
सिञ्चित करती, बस नारी है॥
अनुपम सौन्दर्य वृद्धि करते, 
तन गौर, कृष्ण कच घुँघराले। 
सुन्दर मुख कमल समान खिले, 
हैं चक्षु गहन काले-काले। 
हैं मध्य सौम्य, कृशकाय श्रोणि, 
उन्नत हैं वक्ष भार लेकर, 
कोमल प्रवेष्ट, उभरा नितम्ब, 
हिरणी जैसी लघु पग डाले। 
देवों की मधुर कल्पना की, 
लालित्यमयी फुलवारी है। 
जीवन में विस्तृत मरुथल को
सिञ्चित करती, बस नारी है॥
कचपाश मुक्त हो कुछ भ्रमरक, 
आनन पर फहरण करते हैं, 
सुन्दर प्रसून मकरन्द हेतु, 
मधुकर मानिन्द विचरते हैं। 
श्रीमुख मुस्काने को उत्सुक, 
पर अधर जुड़े हैं आपस में, 
जैसे रजनी के फूल विकल, 
विधु विम्ब प्रतीक्षण करते हैं। 
क्या सम्मोहन है! दिव्य दृश्य, 
मनहर अनन्त सुखकारी है। 
जीवन में विस्तृत मरुथल को
सिञ्चित करती, बस नारी है॥
वाणी में है माधुरी घुली, 
प्रस्पर्श हरित कर दे तन को। 
मन विमल और करुणामय है, 
दे दया दृष्टि हर जन-जन को। 
मनमोहक हेमपुष्पिका की, 
नव गन्धकली-सी सुरभित है। 
हर लेती अन्तर का विषाद, 
महकाती रहती हर क्षण को। 
नीरव में मृदुल मधुकरी की, 
संगीतमयी गुंजारी है। 
जीवन में विस्तृत मरुथल को
सिञ्चित करती, बस नारी है॥
अभिशाप तुल्य एकाकीपन, 
जीवन बन जाता निर्जन वन। 
दुःख के इस चक्रित झंझा में, 
अतिशय उद्विग्न हो जाता मन। 
नव तेज लिये तिमिरांचल में, 
लक्ष्मी की दिव्य दीप्ति बनकर। 
पग-पग पर अति दुर्गम पथ को, 
दीपित करती रहती प्रतिक्षण। 
नर को प्रत्येक अवस्था में, 
दुलराती बारी-बारी है। 
जीवन में विस्तृत मरूथल को
सिञ्चित करती, बस नारी है॥
विधि की है सर्वोत्तम रचना, 
सम्पूर्ण सर्जन की क्यारी है। 
जीवन में विस्तृत मरुथल को
सिञ्चित करती बस नारी है॥