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नारी / सुप्रिया सिंह 'वीणा'

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नारी करै छै तपस्या के संधान जिनगी भर,
तईयो नै मिलै छै ओकरा सम्मान जिनगी भर।
मुहोॅ पर हँसी, आँखी मेॅ लोर मनोॅ में तूफान जिनगी भर,
ढुवैॅ रिश्ता, माँगे खुशी रोॅ दान जिनगी भर।
बचपन में सुनलेॅ छेलां माय सें एक कहानी
एक्के रंग सभ्भे नारी के कहानी जिनगी भर।

दुख मनोॅ में दाबी-चापी केॅ राखै छै नारी
करै सिरिफ पीड़ा के गान जिनगी भर।
सहै परिवार लेली अपमान जिनगी भर
केना होतै एक नारी के अरमान पूरोॅ ?
कानी-कानी बीतै नारी के सम्मान जिनगी भर।

फैललौॅ छै नारी जीवन में एक बड़का जंजाल
केना कटतै कहोॅ ई जे छै माया के सुन्नर जाल
जबेॅ नारी ही छै दुर्गा, काली, शक्ति के रूप परम
तबेॅ निश्चय ही नारी केॅ राखै पड़तै आपनोॅ धरम
नै जों खाड़ी होतैं अपना गोड़ोॅ के ताकत पर
मुश्किल ही मुश्किल लागै छै नारी के उद्धार
हे कृष्ण तोॅरा बिन आबे केॅ करतै रण में मार सम्हार
नै तेॅ सहतै रहतै बेचारी जिल्लत सौसे जिनगी भर।