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नाविक का गीत / मोहन अम्बर

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कस्बे गूँगे बहरे गाँव, और नगर के भारी पाँव
गति अब तो कुछ करो नहीं तो?
डूब जाएगी तट पर नाव।
व्यापारों ने ग़ज़ब कर दिया, होड़ लगा दी नदी किनारे,
कौन डुबाये कौन उबारे? पैसा जहाँ आदमी मारे,
इस तट पर तो कौन सुनेगा,
उस तट से चिल्लाता चिन्तन,
इतनी सस्ती हुई ज़िन्दगी प्यासा बिके न जल के भाव
डूब जाएगी तट पर नाव।
वैसे डींग हाँकती हो तुम, तुमने किए बहुत परिवर्तन,
बहुत कराए गायन नर्तन, बहुत कराए पूजन अर्चन,
इस पर भी हालत तो ऐसी,
भरी धूप में बैठा सावन,
उसको कहीं नहीं मिलती है दूर-दूर तक कोई छाँव,
डूब जाएगी तट पर नाव।
युग का दर्द पूछने वालों सुन कर सहो अगर तो सुन लो,
अस्सी प्रतिशत आँसू चुन लो दस प्रतिशत पर माथा धुन लो,
शेष बचे उस दस प्रतिशत को,
माफ अगर हम कर भी दें तो,
उनमें जो शकुनी मामा है उससे कौन बचाए दाँव
डूब जाएगी तट पर नाव।