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नाव काग़ज़ की लहर पर छोड़ दो / हरि फ़ैज़ाबादी
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नाव काग़ज़ की लहर पर छोड़ दो
बाक़ी बातें ईश्वर पर छोड़ दो
ज़ख़्म उसके पास अपना भेजकर
दर्द चिट्ठी के असर पर छोड़ दो
साथ देने के लिए कह दो मगर
साथ देना हमसफ़र पर छोड़ दो
आदमी के अस्ल की पहचान को
ख़ुद उसी के जानवर पर छोड़ दो
तुमको जो मालूम है करके बयां
झूठ-सच जज की नज़र पर छोड़ दो
सब नहीं पर कुछ मसायल तो मियां
सात फेरों के सफ़र पर छोड़ दो
जंग जब तक टल सके ये फै़सला
किन्तु, लेकिन, पर, मगर पर छोड़ दो