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नाव किरणों से लदी है / कुमार रवींद्र
Kavita Kosh से
सुना तुमने
गीत, सरला
गा रही जो यह नदी है
यहाँ बैठें - आओ बाँचें
छंद लहरों के अनूठे
दूर है मायानगर वह
जहाँ पलते मंत्र झूठे
हवा हँसती
जल सुखी है
नाव किरणों से लदी है
देह में व्यापी वही लय
हो रहा मन बाँसुरी है
सखी मानो, वही धुन
इस सृष्टि की एकल धुरी है
इन क्षणों में
प्रश्न है बेकार
क्या नेकी-बदी है
लिख रही है धूप भी
कविता लहर पर
आओ, हम मिलकर बनायें
रेत पर लय-छंद का घर
नेह के हैं
खेल ये तो
जो न खेले गावदी है