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नाव / स्वप्निल श्रीवास्तव
Kavita Kosh से
मैंने एक नाव बनाई
नदी ने कहा -- मेरे साथ चलो
साथ चलते-चलते हम पहुँच
जाएँगे समुन्दर
समुन्दर में पानी की दुनिया है
तुम्हें मिल जाएगा घर
और मुझे मुक्ति मिल जाएगी
मैं अपना घर-द्वार छोड़ कर
पानी के साथ उसके घर गया
पानी ने कहा -- देखो दूर-दूर तक
फैला हुआ है, मेरा साम्राज्य
क्या तुम पानी बनना चाहोगे ?
उसे क्या पता पानी मेरी आँखों में है
उसमें डूब सकती हैं कई नावें