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नाहीं दाना पानी बाय / जगदीश पीयूष
Kavita Kosh से
नाहीं दाना पानी बाय।
नाहीं छप्पर छानी बाय॥
कहां बइठी काव खाई कहां सोई माई जी।
कहां लरिका खेलाई हंसी रोई माई जी॥
धोती होइगै तार तार।
घरे आवे न बिलार॥
नाहीं सूख भात नाहीं रोटी पोई माई जी।
कहां लरिका खेलाई हंसी रोई माई जी॥
जइसे कोढ़िया म खाज।
पी के आवे दारूबाज॥
मारै लठिया से के का गोहराई माई जी।
कहां लरिका खेलाई हंसी रोई माई जी॥
टूटी जिनगी कै आस।
नाहीं पाई सल्फास॥
कौने तरवा इनारा मा समाई माई जी।
कहां लरिका खेलाई हंसी रोई माई जी॥