बुन्देली लोकगीत ♦ रचनाकार: ईसुरी
ना छेड़री कामनी, कड़ जान दै विचारे खों,
गैल के चलइया खों बीच ना उतार लैं।
जा बारी सी उमर में लंक में कलंक लगौं,
थौरे से जीवन में पूरब तौ सुधार लै।
जीवन दे जुआतन खों जोवन ना दिखारी,
नैकें चल बेला, तन कंदेला सभारलै।
कात व्दिज ‘ईसुर’ सुख सासरे खों राखिये,
सबरौ मजा - मान मायके मैं न मारलै।