ना महफूज आबरू रहर्यी बच्या नहीं विश्वास सखी / मंगतराम शास्त्री
ना महफूज आबरू रहर्यी बच्या नहीं विश्वास सखी
किस पै करां भरोसा हे बेब्बे कोए बची ना आस सखी
आज फूल नै मसळण लाग्या आप बाग का माळी हे
सब किमे न्यूं खावण नै आवै ना कोए बच्या रूखाळी हे
बागां की खुश्बोई मैं आज मिलगी गन्ध खटास सखी
घर मैं दुश्मन बाहर भी दुश्मन, दुश्मन रिश्तेदार हुए
इज्जत के नां पै छोह्री बहुआं पै अत्याचार हुए
खुद रक्षक भक्षक बणग्ये ये नोच्चण लाग्गे मांस सखी।
इज्जत का रहे ढोल पीट खुद इज्जत म्हारी तारैं हे
जळा कै मारैं, पेट मैं मारैं, पीट-पीट कै मारैं हे
न्यूं सोच्चैं रहैं बन्द किवाड़ी दिक्खै ना प्रकास सखी
गुरू का दर्जा सबतै ऊंचा या दुनिया कहती आवै हे
कड़ै ल्हको ल्यां ज्यान बहाण जब बाड़ खेत नै खावै हे
शिक्षा के मन्दिर का भी आज होत्ता देख्या नाश सखी
कितने दिन न्यूं ए चाल्लैगा सदा सह्या ना जावैगा
खुद बहादुर बण लडऩा होगा और ना कोए बचावैगा
फेर मंगतराम चलैगा गेल्याँ कर कै नै इकलास सखी