भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
निंदा / रघुवीर सहाय
Kavita Kosh से
तुम निंदा के
जितने वाक्य
निंदा में कहते हो
वे
निंदा नहीं
रह गए हैं
और
केवल तुम्हारी
घबराहट
बताते हैं