भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

निंदिया के ले गेल उड़ा के / सिलसिला / रणजीत दुधु

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

निदिया के ले गेल उड़ा के हे गोरी तोरे टिकुलिया
तोरे टिकुलिया गोरी-गोरी तोरे टिकुलिया

रात-रात भर हम करवट बदलूँ
कभी उठ बयठूँ कभी अंगना में टहलूँ
कुहू कुहू कुँहके कोइलिया, हे गोरी तोरे टिकुलिया

लिलरा में चमके जैसे बादर में बिजुरी
केसिया लगे हे तोर सावन के कजरी
रूनझुन-रूनझुन बाजे पयलिया हे गोरी तोर टिकुलिया

तिरछी नजर से लुट गेलूँ मिलके
बनलूँ पुजेरी तखनय से दिल के
गजरा में गूथल चमेलिया हे गोरी तोरे टिकुलिया
निंदिया के ले गेल उड़ा के हे गोरी तोरे टिकुलिया