भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
निंदिया सतावे / शमशेर बहादुर सिंह
Kavita Kosh से
निंदिया सतावे मोहे सँझही से सजनी।
सँझही से सजनी ॥1॥
प्रेम-बतकही
तनक हू न भावे
सँझही से सजनी ॥2॥
निंदिया सतावे मोहे...।
छलिया रैन
कजर ढरकावे
सँझही से सजनी ॥3॥
निंदिया सतावे मोहें...।
दुअि नैना मोहे
झुलना झुलावें
सँझही से सजनी ॥4॥
निंदिया सतावे मोहें...।