कैसे हो सकता था
कि जो गुरु के गण थे, नागफनी थे
जड़ थे, कितने कार्यकुशल थे ।
आगे रहते थे, निकट थे इतने
जैसे स्वर्ण कुंडल, त्योंरिया, हाथ ।
क्या खतरा था उन्हें मुझसे
तनिक भी दक्ष नहीं था मैं
निकटता का पाठ मेरे कोर्स में था ही नहीं ।
क्यों रोकते थे वे मुझे कुछ कहने से
ज़रूर हुई होगी कोई असुविधा
ठसी तरह वैशम्पायन के गुरुकुल में
याज्ञवल्क्य से ।