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निकम्मापन / हरिऔध
Kavita Kosh से
नहीं चाहते जो कभी काम करना।
नहीं चाहते जो कि जौ भर उभरना।
नहीं चाहते जो कमर कस उतरना।
कठिन हैं कहीं पाँव जिन का ठहरना।
करेंगे न तिल भर बहुत जो बकेंगे।
भला कौन सा काम वे कर सकेंगे।
जिन्हें भूल अपनी गई बात सारी।
भली सीख लगती जिन्हें है न प्यारी।
जिन्होंने नहीं चाल अपनी सुधारी।
जिन्होंने नहीं आँख अब तक उघारी।
भला क्यों न वे सब गँवा सब सहेंगे।
इसी तौर से वे बिगड़ते रहेंगे।