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निकल आया है / केदारनाथ अग्रवाल
Kavita Kosh से
निकल आया है
- मेरी ख़ामोश निगाहों से
बचपन की हँसी का फौवारा
तुम्हारे जन्म-दिन पर
तुम्हें देने के लिए ।