भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

निकल कर साया-ए-अब्र-ए-रवाँ से / 'रसा' चुग़ताई

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

निकल कर साया-ए-अब्र-ए-रवाँ से
रहे हम मुद्दतों बे-साएबाँ से

ज़मीं पर चाँद आना चाहता है
उतर कर कश्‍ती-ए-आब-ए-रवाँ से

निगाहें ढूँडती हैं रफ़्तगाँ को
सितारे टूटते हैं आसमाँ से

मनाते ख़ैर क्या हम जिस्म ओ जाँ की
उसे चाहा था हम ने जिस्म ओ जाँ से

‘रसा’ किस अहद-ए-ना-पुरसाँ में हम ने
लिया है काम हर्फ़-ए-राएगाँ से