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निकल गुलाब की मुट्ठी से और ख़ुश-बू बन / जावेद अनवर

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निकल गुलाब की मुट्ठी से और ख़ुश-बू बन
मैं भागता हूँ तेरे पीछे और तू जुगनू बन

तू मेरे दर्द की ख़ामोश हिचकियों में आ
तू मेरे ज़ख़्म की तनहाइयों का आँसू बन

मैं झील बनता हूँ शफ़्फ़ाक पानियों से भरी
तू दौड़ दौड़ थका बे-क़रार आहू बन

तू मेरी रात की तारीकियों को गाढ़ा कर
मेरे मकान का तनहा चराग़ भी तू बन

फिर उस के बाद सभी वुसअतें हमारी हैं
मैं आँख बनता हूँ ‘जावेद’ और तू बाज़ू बन