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निकालता हूं तलवार और खुद का गला काटता हूं / हेमन्त शेष
Kavita Kosh से
निकालता हूं तलवार और खुद का गला काटता हूं
खोजता हूं अपना धड़ आंखों के बगैर
किसी दूसरे के घर में शराब या प्यार
समुद्र के पानी में बजती हैं टेलीफोन की घंटियाँ
हो यही शायद किसी लेखक की मौत की खबर
नहीं, नहीं मैं नहीं हूं इस कहानी में
वह तो कोई और होगा
मैं तो कब का मर चुका आत्महत्या के बाद
तब निकाली किसने
काटने को मेरा गला दूसरी बार यह तलवार?