भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

निकाह पढ़ा चाहे फेरे लेले तेरी दोनूं तरियां राजी / मेहर सिंह

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मेरी गैल्यां ब्याह कर वालें न्यू कहरी सै शहजादी
निकाह पढ़ा चाहे फेरे लेले तेरी दोनूं तरियां राजी।टेक

मैं तेरी ताबेदार रहूंगी मत कर शादी का टाला
तेरे रूप का ईसा चान्दना जणुं लेर्या चांद उजाला
म्हारा बंध्या प्रेम का पाला, फेर के कर लेगा काजी।

सच्चे दिल तै दो दिल मिलज्यां तै बणै स्वर्ग में बासा
ब्याह शादी हो ढ़ोल कै डंकै यो होज्या तोड़ खुलासा
करदे पूरी आशा, रहूंगी दुःख सुख कै म्हां साझी।

रहणा सैहणा एक जगह पै ना किसे बात मैं छोह सै
जितना प्रेम तनै मेरे तै यो उतना ऐ मनै मोह सै
जो प्यारे तै करै ल्हको सै वो बणै पाप का साझी।

या शहजादी फेर तेरी गैल्यां हंसकै दिन काटैगी
तू ब्राहमण मैं मुस्लमान की सारै मालम पाटैगी
मेहर सिंह दिल नै डाटैगी साज की रंगत ताजी।