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निक्कर पहने जुलाई / प्रदीप शुक्ल
Kavita Kosh से
सारी छुट्टी बीत गई
बस, थोड़ी बाक़ी है
सोचा था
सब पढ़ डालूँगा
गणित और विज्ञान
पर किताब से हो न सकी कुछ
इस ढंग की पहचान
होमवर्क की लिस्ट अभी
बस्ते से झाँकी है
पापा से
वादा था
जाएँगे हम नैनीताल
पर जाने क्यों टाल दिया
जाएँगे अगले साल
मम्मी कहती, देखो सब
ग़लती पापा की है
धूप सुबह से
आ जाती है
कर देती है शाम
अन्दर-बाहर सन्नाटा
दिन भर करता आराम
आती दिखे जुलाई
पहने निक्कर ख़ाकी है