भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
निग्रो बन्धु को चिट्ठी / शंख घोष / प्रयाग शुक्ल
Kavita Kosh से
रिचर्ड, नाम यह तुम्हारा, शब्द मेरा भी।
रिचर्ड रिचर्ड।
रिचर्ड कौन? कोई नहीं? रिचर्ड मेरा शब्द नहीं।
रिचर्ड, नाम यह तुम्हारा, स्वप्न मेरा भी।
रिचर्ड, रिचर्ड।
कौन रिचर्ड? कोई नहीं? रिचर्ड मेरा स्वप्न नहीं।
रिचर्ड, नाम यह तुम्हारा दुःख मेरा भी।
रिचर्ड रिचर्ड।
रिचर्ड कौन? कोई नहीं? रिचर्ड मेरा दुःख नहीं।
मूल बंगला से अनुवाद : प्रयाग शुक्ल
(हिन्दी में प्रकाशित काव्य-संग्रह “मेघ जैसा मनुष्य" में संकलित)