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निचुड़ा-निचुड़ा और बुझा-सा मेरा शहर / पुरुषोत्तम 'यक़ीन'
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निचुड़ा-निचुड़ा और बुझा सा मेरा शहर
दहशत के साये में पलता मेरा शहर
अपने घरों में दुबका-छिपका मेरा शहर
आतंकी चादर में लिपटा मेरा शहर
झुग्गी में, फ़ुट्पाथ पे जीता मेरा शहर
ढोता सारे शहर का बोझा मेरा शहर
गलियों में अठखेली करता अँधियारा
चौराहों पे जगमग करता मेरा शहर
खोके में पनवाड़ी बैठा चिंतित है
हो गया 'बी० टू०' सुन्दर होगा मेरा शहर
दिल का दुखी आक्रोश मे जलता पाया है
जब भी देखा जिधर भी देखा मेरा शहर
टी०वी० से न चिपक जब पाए लोग 'यक़ीन'
'जी', 'केबल', 'स्टार' ने जकड़ा मेरा शहर