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निज़ामुद्दीन-9 / देवी प्रसाद मिश्र

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जो मेरा हुक़्मरान हो वो मेरा कौन हुआ,
मैं किसी हिज्र की-सी फ़िक्र में हुआ-सा हूँ ।

वो लियाकत जो मेरे काम बहुत न आई,
मुझको भी इल्म कहां मैं किसी दवा-सा हूँ ।

जो मुझे दोस्त करे और मेरी मुश्किल हो,
मैं किसी ऐसे फ़लसफ़े पे क्यों फ़िदा-सा हूँ ।

ये तेरा साथ मेरे साथ में क्या-क्या करता,
मैं तेरे साथ में किस बात पे पहुँचा-सा हूँ ।

मैं निज़ामुद्दीन रहूँ और करूँ ज़िक्रे ख़ैर,
मैं भी क्यों होश में बेहोश या हवा-सा हूँ।