निज़ाम-ए-गुलशन-ए-हस्ती बदल के दम लेंगे
हुदूद-ए-रंज-ओ-अलम से निकल के दम लेंगे
शुऊर हासिल-ए-मकसद जिसे समझता है
ये अज़्म है उसी मंज़िल पे चल के दम लेंगे
मता-ए-अमन लुटाएँगे हम ज़माने में
निज़ाम-ए-जब्र-ओ-तशद्दुद कुचल के दम लेंगे
नदीम बहर-ए-मुसीबत में सूरत-ए-तूफाँ
मचल मचल के उठेंगे सँभल के दम लेंगे
नहीं पसंद रिवाज-ए-कोहन हमें ‘कैस़र’
नए निज़ाम के साँचे में ढल के दम लेंगे