निजीकरण / दिनेश कुमार शुक्ल
आपने कहा- लिख इतिहास
जिसमें किसी व्यक्ति का
जिक्र न हो
लिख परिस्थितियों पर
सामाजिक शक्तियों पर लिख,
और
लिखने वाले ने बार-बार लिखा
सिर्फ आपके बाप का नाम
इस मुहल्ले पर, उस सड़क पर,
उस बाग पर, उस बहार पर...
तब आपने जारी किया
फरमान
कि लिख अब लिख साहित्य
और उसने
फूलों पर, हँसी पर, सपनों पर,
संगीत पर, चिड़ियों के पंखों पर
और
लोगों की जीभ पर
निब गड़ा-गड़ा कर
लिखा बार-बार
आपका नाम सविस्तार
तब आप हँसे
और कहा-
अच्छा चल
अब लिख ले तू भी अपना नाम!
लिखने वाला
काँप गया
गिड़गिड़ाते हुए बोला-
हुजूर
दुनिया की किसी भी लिपि
किसी भी भाषा में
एक भी अक्षर ऐसा बचा नहीं
जिससे लिखा जा सके
किसी और का नाम
सारी लिपियाँ-भाषाएँ
अब खरीद ली हैं
आपके ही के कुल और गोत ने
निजीकरण का हुजूर
आया नया दौर है
आपके सिवाय
दूजा कोई नहीं और है...।