निजी यात्रा / गीता शर्मा बित्थारिया
मैं एक यात्रा
करना चाहती हूं
नितान्त निजी स्व स्फूर्त
आत्म सम्मान के साथ
कुछ समय के लिए
भूल जाना चाहती हूं
लक्ष्मण रेखा और
उसके पार के
आसन्न संकट
मैं भूल जाना चाहती हूं
रावण और अपहरण
राम और अग्नि परीक्षा
मैं भूलना चाहती हूं
द्यूत- क्रीड़ा के पासे पर टिकी
अपनी नियति
और अपनी अस्मिता का चीर हरण
मैं भूल जाना चाहती हूं
इन्द्र और उसके छल
महर्षि गौतम और उनके श्राप से शिला होना
मैं भुला देना चाहती हूं
राजकुमार सिद्धार्थ का गृह त्याग और उनकी स्मृति के साथ जिया एकाकी जीवन
मैं भूलना चाहती हूं
किसी आतताई की कुदृष्टि और जौहर
मैं भूल जाना चाहती हूं
निर्भया जेसिका भंवरी देवी और बस तंदूर और भट्टी
मैं मिटा देना चाहती हूं अखबार में छपी कुकृत्य की हर खबर और चटखारे लेकर पढ़ते गिद्ध झुंड
किसी स्वयं-भू अस्तित्व की भांति स्वतंत्र
मैं रखना चाहती हूं अपने जीवन के
सर्वाधिकार सुरक्षित
सिर्फ और सिर्फ अपने पास
मैं देना चाहती हूं
स्वयं को ये विशेषाधिकार
मैं जी भर कर जी लेना चाहती
कम से कम एक बार
अपनी अंतिम यात्रा पर
जाने से पूर्व